अमृत की यात्रा शुरू की जाए। | Philosia: The Art of seeing

Sandeep Kumar Verma
6 min readJun 29, 2024

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विद्या, अविद्या, ज्ञान और शिक्षा पर प्रकाश डालने के बाद ईसवास्योपनिषद के सातवें अध्याय में ही इस सूत्र पर ओशो बोलते हैं :-

विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह।

अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते।।11।।

जो विद्या और अविद्या-इन दोनों को ही एक साथ जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमरत्व प्राप्त कर लेता है।।11।।

दोनों को जानता है जो, अविद्या को भी और विद्या को भी, वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमृत को जान लेता है। बड़ी अनूठी कड़ी है।

कहा मैंने कि उपनिषद अविद्या के विरोधी नहीं हैं। विद्या के पक्षपाती हैं, अविद्या के विरोधी जरा भी नहीं हैं। कहा है, अविद्या को जानता है जो, वह अविद्या से मृत्यु को पार कर लेता है। अविद्या की सारी लड़ाई मृत्यु से है।

एक डाक्टर लड़ रहा है मृत्यु से, एक इंजीनियर लड़ रहा है मृत्यु से। हमारी सारी साइंस लड़ रही है मृत्यु से। हमारा सारा व्यवसाय जीवन का लड़ रहा है मृत्यु से, बीमारी से, असुरक्षा से, खतरे से। जीवन मिट न जाए, उसके बचाने में लगी है सारी अविद्या। सारी अविद्या का संघर्ष मृत्यु से है।

तो जो अविद्या को जानता है, वह मृत्यु को पार कर लेता है। वह जी लेता है ठीक से। तो अविद्या से मृत्यु को पार कर लेना। लेकिन अविद्या से अमृत न मिलेगा। सिर्फ मृत्यु पार होती रहेगी।

अविद्या से सिर्फ हम जी लेंगे। लेकिन जीवन का सार नहीं मिलेगा, मात्र जी लेंगे। कहना चाहिए-वेजीटेशन। गुजर जाएंगे जिंदगी के रास्ते से। भोजन मिल जाएगा, मकान मिल जाएगा, दवा मिल जाएगी, औषधि मिल जाएगी, सब मिल जाएगा। जिंदगी ठीक से गुजर जाएगी, सुविधा से गुजर जाएगी, लेकिन अमृत न मिलेगा।

अविद्या से मृत्यु को जीता जा सकता है, लेकिन अमृत को नहीं पाया जा सकता। यह दूसरा सूत्र और भी जरूरी है।

मृत्यु को भी जीत ले किसी दिन विज्ञान और हम आदमी को इस हालत में कर दें कि वह करीब-करीब इम्मार्टल हो जाए, न मरे, तो भी क्या हुआ?

तो भी अमृत का कोई अनुभव नहीं हुआ। तो भी हमने उसे नहीं जाना, जो अमृत है।

तब भी हम उसी को जान रहे हैं, जो सत्तर साल जीता था, अब सात सौ साल जीता है। तब सत्तर साल जीता था, अब सात हजार साल जीता है। लेकिन जो जीने के भी पहले था, जन्म के भी पहले था और जो मरने के बाद भी बच जाता है, उसका हमें कोई अनुभव नहीं है।

अमृत को तो जानना हो तो विद्या से ही जाना जा सकता है।

पेट को ही भूख लगती है, आपको कभी भूख नहीं लगी। आज तक नहीं लगी। लग नहीं सकती। क्योंकि आत्मतत्व में भूख का कोई उपाय नहीं है। आत्मतत्व के पास भूख का कोई यंत्र नहीं है। आत्मतत्व के पास भूख की कोई सुविधा नहीं है। आत्मतत्व में न कुछ कम होता, न ज्यादा होता। आत्मतत्व के लिए कोई कमी नहीं होती जिसको पूरा करने के लिए भूख लगे। शरीर में रोज कमी होती है। क्योंकि शरीर रोज मरता है। असल में मरने की वजह से भूख लगती है।

भोजन से हम अपने मरे हुए तत्व की कमी पूरी कर देते हैं। जो कमी हो गई है, उसको पूरा कर देते हैं। लेकिन आत्मा तो मरती नहीं, उसका कोई तत्व कम नहीं होता, इसलिए आत्मा को भूख का कोई कारण नहीं।

पर एक और मजे की बात है।

आत्मा को भूख नहीं लगती, शरीर को भूख पता नहीं चलती।

शरीर को भूख लगती है, आत्मा को भूख पता चलती है।

यह करीब-करीब मामला वैसा ही है जैसा एक बार आपको पता ही होगा, एक जंगल में आग लग गई थी। और एक अंधे और लंगड़े को जंगल के बाहर निकलना पड़ा था। अंधा देख नहीं पाता था। आग थी भयंकर। चल तो सकता था, पैर मजबूत थे, लेकिन चलना खतरनाक था। जहां खड़ा था, कम से कम वहां अभी आग नहीं थी। अंधा आदमी भागे, बचने का उपाय करे, और जल जाए! पास में लंगड़ा भी था, वह चल नहीं सकता था। बेशक उसको दिखाई पड़ता था कि आग आ रही है।

वह अंधे और लंगड़े समझदार रहे होंगे, जैसा कि सामान्य रूप से अंधे और लंगड़े रहते नहीं। समझदार इतने होते नहीं।

आंख वाले नहीं होते, अंधे कैसे होंगे?

पैर वाले नहीं होते, तो लंगड़े कैसे होंगे?

उन दोनों ने एक समझौता कर लिया। लंगड़े ने कहा कि अगर बचना है हमें तो एक ही रास्ता है कि मैं तुम्हारे कंधों पर आ जाऊं। तुम्हारे पैर का उपयोग करो, मेरी आंख का।

आत्मा और शरीर की जो यात्रा है जीवन के भीतर और बाहर, वह अंधे-लंगड़े की यात्रा है।

वह एक गहरा समझौता है। आत्मा को अनुभव होता है, घटना कोई नहीं घटती। शरीर में घटनाएं घटती हैं, अनुभव कोई नहीं होता।

अनुभव सब आत्मा को होते हैं, घटनाएं सब शरीर में घटती हैं। इसीलिए तो उपद्रव हो जाता है।

इसलिए उपद्रव ऐसे ही हो जाता है। उस दिन भी शायद हुआ होगा। कहानी में ईसप ने लिखा नहीं है। जिसने यह कहानी लिखी है अंधे-लंगड़े की, उसने लिखा नहीं है, लेकिन हुआ जरूर होगा।

जब अंधा तेजी से दौड़ा होगा और लंगड़े ने तेजी से देखा होगा-दोनों को तेजी की जरूरत थी, आग थी जंगल में-तो यह पूरी संभावना है कि अंधे को ऐसा लगा हो कि मैं देख रहा हूं और लंगड़े को ऐसा लगा हो कि मैं भाग रहा हूं। इसकी बहुत संभावना है।

बस, वैसा ही हमारे भीतर घट जाता है।

इसको तोड़ना पड़ेगा। इसको अलग-अलग करना पड़ेगा। ये उलझे तार हैं। शरीर में सब घटनाएं घटती हैं, आत्मा सब अनुभव करती है। इन दोनों को अलग-अलग कर लें, तो विद्या का सूत्र पकड़ में आने लगे। अमृत की यात्रा शुरू हो जाए। (और जब आपका अपने शरीर से तादात्म्य टूटेगा तो शरीर के साथ चिपके सारे विशेषण जैसे कुल, जाति, देश, धर्म इत्यादि भी गिर जाएँगे। तब आप असली ब्राह्मण कहलायेंगे और असली धर्म की यात्रा तो तब शुरू होगी।)

-ओशो, ईशावास्योपनिषद, अध्याय #7, वह अव्याख्य है

सांसारिक जीवन जीते हुए ओशो के प्रयोगों को जीवन में उतरकर जो मैंने आध्यात्मिक यात्रा की है उसके अनुभव से कुछ सुझाव:-

सांसारिक जीवन को जीवन संपूर्णता के साथ जीना, जीवन को एक प्रामाणिक रूप में जीना यानी भीतर बाहर एक और ईमानदारी से जीना, लोगोंकी बिना भेदभाव के निःस्वार्थ भाव से सेवा करना और सभी बंधनों (धार्मिक, शैक्षिक, जाति, रंग आदि) से मुक्त होना ये तीन मेरे जीवन में महत्वपूर्ण उत्प्रेरक साबित हुए हैं जो किसी को गहराई तक गोता लगाने में मदद कर सकते हैं।

बुद्ध के सुझाये इस प्रयोग को मैंने सुबह दांतों पर ब्रश करते समय अपने जीवन में एक प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया भीतर की आँख खोलने का प्रयोग या होंश का विचार शून्य अवस्था का अनुभव प्राप्त करने का उपाय ना रहकर, अब होंश का प्रयोग ना मेरे लिए काम करने का तरीका हो गया है। ( instagram पर होंश) हो सकता है कि आपको भी यह उपयुक्तलगे अन्यथा अधिकांश लोगों के लिए ओशो का सुझाया गतिशील ध्यान है। लगभग 500 साल पहले भारतीय रहस्यवादी गोरखनाथद्वारा खोजी गई और ओशो द्वारा आगे संशोधित की गई 110 अन्य ध् यान तकनीकें हैं जिनका प्रयोग किया जा सकताहै (ओशो की किताब “प्रीतम छवि नैनन बसी”, चेप्टर #11 मेरा संदेश है, ध्यान में डुबो से यह इंस्टाग्राम पर ओशो का ऑडियो लिया गया है। इस किताब को फ्री पढ़ने के लिए osho.com पर लॉगिन करके Reading>online libravy पर हिन्दी बुक्स सेलेक्ट करें। ) और नियमित जीवन में उपयुक्त अभ्यास किया जा सकता है।

नमस्कार ….. मैं अपनी आंतरिक यात्रा के व्यक्तिगत अनुभवों से अपनी टिप्पणियाँ लिखता हूँ। इस पोस्ट में दुनिया भरके रहस्यवादियों की शिक्षाएँ शामिल हो सकती हैं जिन्हें मैं आज भी मानने लायक समझता हूँ। मेरे बारे में अधिकजानकारी के लिए और मेरे साथ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जुड़ने के लिए, मेरे सोशल मीडिया लिंक से जुड़ने केलिए वेबसाइट https://linktr.ee/Joshuto पर एक नज़र डालें, या मेरे यूट्यूब चैनल की सदस्यता लें और/यापॉडकास्ट आदि सुनें।

Originally published at https://philosia.in on June 29, 2024.

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Sandeep Kumar Verma

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