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जो जागता है वह धन्य है। मनुष्यों सतत् जागते रहो!-महावीर

Sandeep Kumar Verma
11 min readSep 11, 2023

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बचपन में हम सभी छोटी छोटी बातों पर इतने आनंद क्यों होते थे? बचपन में हमको कोई भी काम करने में क्यों बहुत आनंद होता था? खेलने में हार और जीत क्यों महत्वपूर्ण नहीं थी? झगड़े के बाद फिर से गहरी दोस्ती क्यों हो जाती थी?

इन सब प्रश्नों का उत्तर एक ही है कि बचपन में हम कोई भी कार्य करते हों हमारा होंश ‘सतत्’ बना रहता था। इस किसी भी काम को होंश पूर्वक करने को ही महावीर ने ‘जागते रहो’ या सजग बने रहो या जाग्रत रहो कहा है। मैंने भी अपने कई पोस्ट में इस जगाने या होंश में रहने, ध्यानपूर्वक काम को करने का वर्णन किया है। क्योंकि मुझे इससे ही संसार में रहकर संसार से बाहर के अनुभव हुए।

जिन सूत्र पर अपने मुख से महावीर को बोलते ओशो ने अपने को बहुत ही धन्य महसूस किया होगा। उनके प्रवचनों में मुझे यह सबसे अधिक पसंद है क्योंकि महावीर के बाद 2500 वर्षों में आये क़रीब क़रीब सभी संतों ने इसका वर्णन अलग अलग शब्दों में किया है। जीसस ने इसे ‘beware’ यानी be-aware यानी होंश में रहो। बुद्ध ने इसे सम्मासती कहा। कबीर ने कहा “साधो सहज समाधि भली” इसमें जो सहज ही हमको करना आसान हो, उसी को महावीर जागते रहो कहते हैं। इसी को सहज योग कहा किसी ने, तो किसी ने सहज ध्यान कहा। अरब की द बुक ऑफ़ मिरदाद में एक पात्र जो सहजता से सभी की सेवा करता है, एक दिन सबका नेता हो जाता है। अष्टावक्र ने इसे अपने मन, शरीर का दृष्टा या साक्षी होना कहा। कृष्णमूर्ति…

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Written by Sandeep Kumar Verma

Spiritual seeker conveying own experiences. Ego is only an absence, like darkness, bring in the lamp_awareness&BeA.LightUntoYourself. https://linktr.ee/Joshuto

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